अब भी जागो, सुर में रागो, भारत मां की संतानों!
बिन बेटी के, बेटे वालों, किससे ब्याह रचाओगे?
बहन न होगी, तिलक न होगा, किसके वीर कहलाओगे?
उपरोक्त
पंक्तियां आज के समाज पर हजारों सवालों की बरसात करती हैं. 11 अक्टूबर को
विश्व बाल कन्या दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. अपनी तरह का यह पहला
दिवस मनाया जा रहा है लेकिन आखिर इस दिन की क्यूं जरूरत पड़ रही है? बाल
कन्याओं के लिए एक विशेष दिन निश्चित कर क्या हम उन्हें संरक्षित करने की
कोशिश कर रहे हैं? संरक्षित उन चीजों को किया जाता है जो खात्मे के कगार पर
हों और यह सच है कि आज अगर बाल कन्याओं के लिए विशेष कदम नहीं उठाए गए तो
एक दिन आएगा जब समाज का संतुलन बहुत ज्यादा बिगड़ जाएगा.
Story of Girl Child Abortion: एक अजन्मी बच्ची की अभिलाषा
यह कहानी बेहद मार्मिक और पूरी तरह से काल्पनिक है लेकिन इसका शायद वास्तविकता से बेहद करीबी रिश्ता हो.
कोमल तीन
महीने से अपनी मां के गर्भ में है. उसके माता-पिता उसको गिरवाने यानि
गर्भपात करने का विचार करते हैं. उसी रात वह अपनी मां के सपने में आती है
और पूछती है कि “उठो मां, मुझसे बात करो.” इस नौ महीने के सफर को आप तीन
महीने में ही क्यूं विराम लगा रही हो? क्या आप अपनी कोख में मेरी हंसी
महसूस करना नहीं चाहती? अगर नानी ने आपके साथ भी ऐसा ही किया होता तो क्या
होता? प्लीज मुझे इस दुनिया में आने दो, प्लीज मुझे भी दुनिया देखने दो,
मुझे भी अपनी ममता के आंचल में आने का मौका दो.” यह एक सपना था जिसे इस
कन्या की मां ने सपना समझ कर ही भुला दिया और जो पुष्प उनके कोख में खिलने
वाला था उसे कोख में ही दफना दिया.
यह कहानी
सिर्फ एक कोमल की नहीं बल्कि देश की हजारों कोमलों की है जिन्हें उनके
परिवार वाले जन्म से पहले ही कोख में ही मार डालते हैं.
कन्या: समाज का अभिन्न अंग
कन्याएं
समाज का आधार होती हैं. यही मां, बहन, बेटी और बहू का किरदार निभाती हैं.
लेकिन समाज के कई हिस्सों में इन्हीं कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही मार
दिया जाता है – वजह इनके बड़े होने पर इन्हें पालने, दहेज देने और इज्जत
बचाने के लिए. आज 21वीं सदी में यह तर्क हमारी प्रगतिशील सोच पर एक काले
कलंक की तरह हैं लेकिन यह पूरी तरह सच है.
Girl Child Abortion Cases in India: भारत में कन्याओं की स्थिति
भारत में
नवरात्र पर्व के दौरान बाल कन्याओं को पूजने का रिवाज है. लेकिन यह बेहद
शर्मनाक बात है कि जिन कन्याओं को यहां भगवान का रूप माना जाता है उसे लोग
अपने घर में एक बोझ मानकर जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं. हरियाणा और
मध्यप्रदेश जैसे जगहों पर लोग कन्या भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion) इज्जत और दहेज
बचाने के लिए करते हैं तो भारत के शहरों में बेटों की चाह में बेटियों का
गला दबा दिया जाता है और इसके दुष्परिणाम आज सबके सामने हैं.
भारत में कन्या भ्रूण हत्याएं
लैंसेट पत्रिका (Lancet journal) में छपे एक अध्ययन के निष्कर्षों के अनुसार वर्ष 1980 से 2010 के बीच इस तरह के गर्भपातों (Girl Child Abortion) की संख्या 42 लाख से एक करोड़ 21 लाख के बीच रही है.
साथ ही
‘सेंटर फॉर सोशल रिसर्च’ का अनुमान है कि बीते 20 वर्ष में भारत में कन्या
भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion) के कारण एक करोड़ से अधिक बच्चियां जन्म
नहीं ले सकीं. वर्ष 2001 की जनगणना कहती है कि दिल्ली में हर एक हजार
पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 865 थी. वहीं, हरियाणा के अंबाला में एक हजार
पुरुषों पर 784 महिलाएं और कुरुक्षेत्र में एक हजार पुरुषों पर 770
महिलाएं थीं.
विश्व बाल कन्या दिवस 2012: World Girl Child Day 2012
पूरे विश्व में बाल कन्याओं और कन्या भ्रूण हत्याओं (Girl Child Abortion)
की बढ़ती संख्या देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 11 अक्टूबर को विश्व बाल
कन्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है. बाल कन्याओं और कन्या
भ्रूण हत्याओं को रोकने के लिए इस दिन विश्व भर में चर्चा होती है और जरूरी
कदम उठाए जाते हैं.
क्या सिर्फ चर्चा से रुकेगा यह पाप
कन्या भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion)
को पाप कहना गलत नहीं होगा. भारत में इस पाप को रोकने के लिए कानून में
दंड तक का प्रावधान है लेकिन बेहद शर्मनाक है कि आज इस कानून का बुरी तरह
से खंडन हो रहा है. कन्या भ्रूण हत्या (Girl Child Abortion)
को रोकने के लिए सिर्फ कानून बना देने से क्या होता है? कानून के अनुपालन
के लिए एक मशीनरी भी तो होनी चाहिए. साथ ही कन्या भ्रूण हत्याओं के बढ़ते
मामलों का सबसे बड़ा दोषी भारतीय समाज का विभाजन है जहां पुरुषों और
स्त्रियों के बीच जमीन-आसमान का अंतर रखा गया है.
How to Prevent Girl Child Abortion: ऐसा हो तो शायद रुक जाए कन्याओं की हत्या
कन्या
भ्रूण हत्या जटिल मसला है. असल में इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी स्त्रियों
की जागरूकता ही है, क्योंकि इस संदर्भ में निर्णय तो स्त्री को ही लेना
होता है. दूसरी परेशानी कानून-व्यवस्था के स्तर पर है. यह जानते हुए भी कि
भ्रूण का लिंग परीक्षण अपराध है, गली-मुहल्लों में ऐसे क्लिनिक चल रहे हैं
जो लिंग परीक्षण और गर्भपात के लिए ही बदनाम हैं. जनता इनके बारे में जानती
है, लेकिन सरकारी अमले आंखें मूंदे रहते हैं. भारत में इस समस्या से
निबटना बहुत मुश्किल है, पर अगर स्त्रियां तय कर लें तो नामुमकिन तो नहीं
ही है. साथ ही शिक्षा व्यवस्था ऐसी बनानी होगी कि बच्चों को लड़के-लड़की के
बीच किसी तरह के भेदभाव का आभास न हो. वे एक-दूसरे को समान समझें और वैसा
ही व्यवहार करें.